ए ताजदार -ए -जहां ,हुकूमत -ए -हसीन गंवारा है हमें , पर !अपने क़ातिब -ए -तक़दीर हैं हम , ये ज़िंदगी का सिलसिला हमारा है-
ए ताजदार -ए -जहां ,हुकूमत -ए -हसीन गंवारा है हमें ,
पर !अपने क़ातिब -ए -तक़दीर हैं हम ,
ये ज़िंदगी का सिलसिला हमारा है।
मतलब यानी पैगाम क्या है शायर का यहां इस शैर में ?राज छिपा है अभिनव प्रयोग 'ताजदारे -जहां 'यानी "वली ए मुलुक" ,बादशाह ,शहंशाहों के शहंशाह हमें तुम्हारा हुकुम तो क़ुबूल है ,हुकूम खुदा का सर आँखों पर ,फिर भी ये ज़िंदगी हमारी है निहायत निजी। फिर तुमने ही हमें कर्म करने की स्वतंत्रता दी है।
विशेष :ये शैर मास्टर चिन्मय शर्मा (डीपीएस ,आरकेपुरम कक्षा ग्यारह विज्ञान संकाय )का है। आप हिंदी अंग्रेजी में अच्छी दखल रखते हैं देश भक्ति की लम्बी रचनाएं देने में आप एक मुकाम हासिल कर चुके हैं। खुदा आपकी कलम यूं ही परवान चढ़े।
प्रस्तुति :दादू !(वीरुभाई )
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