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भाव बोध सहित :अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरम्। हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥1।।

भाव बोध सहित :


अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरम्। हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥1।। (मधुराधिपते अखिलं मधुरम्) अर्थ (Meaning in Hindi): अधरं मधुरं – श्री कृष्ण के होंठ मधुर हैं वदनं मधुरं – मुख मधुर है नयनं मधुरं – नेत्र (ऑंखें) मधुर हैं हसितं मधुरम् – मुस्कान मधुर है हृदयं मधुरं – हृदय मधुर है गमनं मधुरं – चाल भी मधुर है मधुराधिपते – मधुराधिपति (मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण) अखिलं मधुरम् – सभी प्रकार से मधुर है वचनं मधुरं चरितं मधुरं, वसनं मधुरं वलितं मधुरम्। चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥2।। (मधुराधिपते अखिलं मधुरम्) अर्थ (Meaning in Hindi): वचनं मधुरं – भगवान श्रीकृष्ण के वचन (बोलना) मधुर है चरितं मधुरं – चरित्र मधुर है वसनं मधुरं – वस्त्र मधुर हैं वलितं मधुरम् – वलय, कंगन मधुर हैं चलितं मधुरं – चलना मधुर है भ्रमितं मधुरं – भ्रमण (घूमना) मधुर है मधुराधिपते – मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण (मधुराधिपति) अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः, पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ। नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥3।। अर्थ (Stotra Meaning in Hindi): वेणुर्मधुरो – श्री कृष्ण की वेणु मधुर है, बांसुरी मधुर है रेणुर्मधुरः – चरणरज मधुर है, उनको चढ़ाये हुए फूल मधुर हैं पाणिर्मधुरः – हाथ (करकमल) मधुर हैं पादौ मधुरौ – चरण मधुर हैं नृत्यं मधुरं – नृत्य मधुर है सख्यं मधुरं – मित्रता मधुर है मधुराधिपते – हे श्रीकृष्ण (मधुराधिपति) अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है गीतं मधुरं पीतं मधुरं, भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्। रूपं मधुरं तिलकं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥4।। अर्थ (Meaning in Hindi): गीतं मधुरं – श्री कृष्ण के गीत मधुर हैं पीतं मधुरं – पीताम्बर मधुर है भुक्तं मधुरं – भोजन (खाना) मधुर है सुप्तं मधुरम् – शयन (सोना) मधुर है रूपं मधुरं – रूप मधुर है तिलकं मधुरं – तिलक (टीका) मधुर है मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति) अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है करणं मधुरं तरणं मधुरं, हरणं मधुरं रमणं मधुरम्। वमितं मधुरं शमितं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥5।। अर्थ (Stotra Meaning in Hindi): करणं मधुरं – कार्य मधुर हैं तरणं मधुरं – तारना मधुर है (दुखो से तारना, उद्धार करना) हरणं मधुरं – हरण मधुर है (दुःख हरण) रमणं मधुरम् – रमण मधुर है वमितं मधुरं – उद्धार मधुर हैं शमितं मधुरं – शांत रहना मधुर है मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति) अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है गुंजा मधुरा माला मधुरा, यमुना मधुरा वीची मधुरा। सलिलं मधुरं कमलं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥6।। अर्थ (Meaning in Hindi): गुंजा मधुरा – गर्दन मधुर है माला मधुरा – माला भी मधुर है यमुना मधुरा – यमुना मधुर है वीची मधुरा – यमुना की लहरें मधुर हैं सलिलं मधुरं – यमुना का पानी मधुर है कमलं मधुरं – यमुना के कमल मधुर हैं मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति) अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है गोपी मधुरा लीला मधुरा, युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम्। दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥7।। अर्थ (Meaning in Hindi): गोपी मधुरा – गोपियाँ मधुर हैं लीला मधुरा – कृष्ण की लीला मधुर है युक्तं मधुरं – उनक सयोग मधुर है मुक्तं मधुरम् – वियोग मधुर है दृष्टं मधुरं – निरिक्षण (देखना) मधुर है शिष्टं मधुरं – शिष्टाचार (शिष्टता) भी मधुर है मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति) अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है गोपा मधुरा गावो मधुरा, यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा। दलितं मधुरं फलितं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥8।। अर्थ (Stotra Meaning in Hindi): गोपा मधुरा – गोप मधुर हैं गावो मधुरा – गायें मधुर हैं यष्टिर्मधुरा – लकुटी (छड़ी) मधुर है सृष्टिर्मधुरा – सृष्टि (रचना) मधुर है दलितं मधुरं – दलन (विनाश करना) मधुर है फलितं मधुरं – फल देना (वर देना) मधुर है मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति) अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है ।
हरे कृष्णा नारायण ,नारायणियों !
कृपया लीला मंचन गोपी प्रेम भी देखें आनंद लें ,कृष्ण की हर बात सुन्दर ,कृष्णा इसीलिए हैं :गोपीचंदर ,नन्द के नंदन ,तू भी नंदन ,मैं भी नंदन ,ये भी नंदन ,वो भी नंदन ,नंदन नंदन परमानन्दं !

https://www.youtube.com/watch?v=wjpAUYphTWw 🙏🌹🕉️JAI SHRI RADHAKRISHNA🕉️🌹🙏

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इस शास्त्र का 'पूर्वमीमांसा' नाम इस अभिप्राय से नहीं रखा गया है कि यह उत्तरमीमांसा से पहले बना  । 'पूर्व' कहने का तात्पर्य यह है कि कर्मकांड मनुष्य का प्रथम धर्म है ज्ञानकांड का अधिकार उसके उपरान्त आता है। मीमांसा का तत्वसिद्धान्त विलक्षण है । इसकी गणना अनीश्वरवादी दर्शनों में है । षड्दर्शन षड्दर्शन उन भारतीय दार्शनिक एवं धार्मिक विचारों के मंथन का परिपक्व परिणाम है जो हजारों वर्षो के चिन्तन से उतरा और हिन्दू (वैदिक) दर्शन के नाम से प्रचलित हुआ। इन्हें आस्तिक दर्शन भी कहा जाता है। दर्शन और उनके प्रणेता निम्नलिखित है। १ पूर्व मीमांसा: महिर्ष जैमिनी २ वेदान्त (उत्तर मीमांसा): महिर्ष बादरायण ३ सांख्य: महिर्ष कपिल ४ वैशेषिक: महिर्ष कणाद ५ न्याय: महिर्ष गौतम ६ योग: महिर्ष पतंजलि वेद ज्ञान को समझने व समझाने के लिए दो प्रयास हुए: १. दर्शनशास्त्र २. ब्राह्यण और उपनिषदादि ग्रन्थ। ब्राह्यण और उपनिषदादि ग्रन्थों में अपने-अपने विषय के आप्त ज्ञाताओं द्वारा अपने शिष्यों, श्रद्धावान व जिज्ञासु लोगों को  मूल वैदिक ज्ञान सरल भाषा में विस्तार से समझाया है। यह ऐसे ही है जैसे आज के युग में

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