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पूति पियारो पिता कौं ,गौहनि लागा धाइ , लोभ मिठाई हाथ दे ,आपण गया भुलाइ।

पूति पियारो पिता कौं ,गौहनि लागा धाइ ,

लोभ मिठाई हाथ दे ,आपण गया भुलाइ।  

The beloved son of his Father,

Behind his Father walked along ,

(Maya )placed greed -sweet in his hand 

And he forgot Who was his own . 

शब्दार्थ :पूत पियारो- प्रिय पुत्र.(आत्मा परमात्मा का ही वंश है कुनबा है )

पिता कौं-पिता/ईश्वर  /परमात्मा 

गौंहनि-साथ.

लागा धाइ-दौडकर.

लोभ मिठाई हाथ दे-हाथ में लोभ मिठाई देकर.

आपण -अपनापन, निजतत्व.

जीवात्मा अपने प्रिय पिता के पीछे चल रहा था, दौड़कर मिल रहा था. माया से यह देखा नहीं गया और उसने साधक के हाथ में मिठाई को थमा दिया. माया ने जीवात्मा को भरमाने के लिए उसके हाथों में लोभ और विषय की मिठाई थमा दी है. 

 कबीर  ने माया को महाठगिनी कहा है। यह स्वंय के मूल स्वभाव को छुपा कर जीवात्मा को लालायित कर अपने भरम जाल में फांस लेती है, जिसे समझना अत्यंत ही आवश्यक है। इसे कौन समझ सकता है। यह ज्ञान सच्चा गुरु ही दे सकता है। लेकिन साधक को चाहिए की वह स्वविवेक से सच्चे गुरु की पहचान करे। गुरु धारण करने से पूर्व गुरु की पहचान भी आवश्यक है।

लोभ मिठाई से आशय माया के द्वारा जीव को भरमाने से है। जीवात्मा का मूल उद्देश्य ईश्वर में एकाकार हो जाना है। 

विशेष :माया का अर्थ केवल धन से नहीं होता बल्कि जिस चीज में हमारा मन अटकता है, वही हमारे लिए माया है। ... मन के माया में आते ही हमारी ऊर्जा बाहर की तरफ बहने लगती है, जिससे आत्मा का ज्ञान नष्ट हो जाता है और व्यक्ति संसार में बंधने वाले दुष्ट कर्म करने लगता है जिससे मूढ़ता को प्राप्त हो जाता है।

कृपया यहां भी पधारें :https://www.vedicaim.com/2017/08/maya-kya-hai.html

मैं और मोर तोर ,तह माया , जेहि बस कीन्हें ,जीव निकाया



मैं और मोर तोर ,तह माया ,

जेहि बस कीन्हें ,जीव निकाया। 

 I and Mine is Maya .

ये मैं हूँ। ये मेरा है। ये तू है ये तेरा है ,बस ये ही माया है जिसने पूरे जीव संसार 

को 

अपने वश  में कर रखा है। 

ममत्व और अहंकार उस मार्ग की बाधाएं हैं जो भगवान की ओर जाता 

हैऔर उस परम तत्व परब्रह्म (स्वयं अपने सच्चिदानंद स्वरूप का )बोध कराता 

है। 


माया से ही पैदा होता है अहंकार और ममत्व। ममत्व यानी मन का ,मेरा ,ये मेरा  

है का भाव ,माया की  ही संतान है।  



This feeling of I is the main obstacle in our spiritual path .The 

limited sense of I and the concept that something belongs to me is 

all illusion and is only Maya .

It is like in a dream I say ,I am the king ,this is my kingdom .But 

when I wake up the king is not there ,the kingdom is not there .It 

was all the projection of my mind .So is this world ,which rises as a 

thought in my mind and merges back into my mind .This world 

appears and disappears like my thoughts .This is all Maya .It is 

there ,and it is not there .

Whatever belongs to me today belonged to somebody else in the 

past and will belong to somebody else in the future .

I and mine ,it is all an illusion and play .Even today whatever I say 

is mine somebody else is enjoying it .

सब माया का कुनबा है।

The reality is this :

I am the Vibhuti (विभूति )of God tells Bhagvan to Arjuna .I is being 

used here for Arjuna .Arjuna you are also a part of that Vibhuti 

.This whole world is my Vibhuti (विस्तार ),my own expression .

Like me ,you are:

 सत्यम ज्ञानम् अनन्तं। 

But you consider yourself as limited ,this body mind sense complex 

,that is Maya ,ignorance .

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