हथियारों से जंग जीती जा सकती है पर दिल नहीं, दिल तो किरदार से जीते जाते है: आज है मुहर्रम २० अगस्त २०२१ याद कीजिये हज़रात इमाम हुसैन साहब को
'मुहर्रम 'शब्द का क्या अर्थ है ?क्यों मनाया जाता है मुहर्रम ?
- शुहदाए कर्बला का ग़म करना, मुहर्रम के रसूम अज़ादारी अदा करना, ताज़ियादारी करना, मातम करना-मुहर्रम करना कहलाता है।
- क्यों मनाया जाता है मुहर्रम? इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद के नाती हजरत इमाम हुसैन को इसी मुहर्रम के महीने में कर्बला की जंग (680 ईसवी) में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था. कर्बला की ये जंग हजरत इमाम हुसैन और बादशाह यजीद की सेना के बीच हुई थी.
- आज है मुहर्रम २० अगस्त २०२१ याद कीजिये हज़रात इमाम हुसैन साहब को
अंग्रेजी कैलेंडर को देखें तो इस बार मुहर्रम का इस्लामिक महीना 11 अगस्त से शुरू हुआ है। मुहर्रम का दसवां दिन आशूरा होता है और इस दिन मुहर्रम मनाया जाता है। बता दें, इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार साल का पहला महीना मुहर्रम होता है। इस दिन को 'आशूरा' कहते हैं। यह महीना मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस बार 20 अगस्त मुहर्रम मनाया जाएगा।
बता दें, इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद के नाती हजरत इमाम हुसैन को इसी मुहर्रम के महीने में कर्बला की जंग में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था। जिसके बाद से इसे गम का महीना भी माना जाता है।
क्या है इतिहास ?
इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद के नाती हजरत इमाम हुसैन की इसी मुहर्रम के महीने में कर्बला की जंग (680 ईसवी) में शहादत हुई थी। कर्बला की ये जंग हजरत इमाम हुसैन और बादशाह यजीद की सेना के बीच हुई थी। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार मुहर्रम के महीने में दसवें दिन ही इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपनी जान कुर्बान कर दी थी। इसे 'आशूरा' भी कहा जाता है इसीलिए मुहर्रम के दसवें दिन को बहुत खास माना जाता है।कई जगहों पर जारी किया गया है गाइडलाइन
मुहर्रम को लेकर कई जगहों पर प्रशासन द्वारा गाइडलाइन जारी कर दी गई है। बता दें, कोरोना संक्रमण के कारण इस साल मुहर्रम के दौरान जुलूस और ताजिया निकालने की अनुमति नहीं दी गई है। हाल में उत्तर प्रदेश में मुहर्रम को लेकर गाइडलाइन जारी कर दी गई है। इस साल कोरोना संक्रमण के कारण मुहर्रम के दौरान जुलूस और ताजिया निकालने की अनुमति नहीं दी गई है। पुलिस महानिदेशक कार्यालय से मुहर्रम की सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर निर्देश जारी किए हैं। यूपी के अलावा अन्य कई राज्यों में इस नियम का पालन किया जा रहा है।
हजरत इमाम हुसैन का मकबरा?
हजरत इमाम हुसैन का मकबरा इराक के शहर कर्बला में उसी जगह है, जहां इमाम हुसैन और यजीद की जंग हुई थी। ये जगह इराक की राजधानी बगदाद से अनुमानित 120 किलोमीटर दूर है। इसे मुस्लिमों के सबसे सम्मानित स्थानों में से एक माना जाता है। मुहर्रम में मुसलमान हजरत हुसैन की इसी शहादत को याद करते हैं।- मुहर्रम पे एक दो शैर ?
- (१ )
- पानी का तलब हो तो एक काम किया कर,
- कर्बला के नाम पर एक जाम पिया कर,
- दी मुझको हुसैन इब्न अली ने ये नसीहत,
- जालिम हो मुकाबिल तो मेरा नाम लिया कर।
- (२ )
ना जाने क्यों मेरी आँखों में आ गए आँसू,
सिखा रहा था मैं बच्चे को कर्बला लिखना।
(३ )
वो जिसने अपने नाना का वादा वफा कर दिया,
घर का घर सुपुर्द-ए-खुदा कर दिया,
नोश कर लिया जिसने शहादत का जाम,
उस हुसैन इब्न अली को लाखों सलाम।
(४ )
खून से चराग-ए-दीन जलाया हुसैन ने,
रस्म-ए-वफ़ा को खूब निभाया हुसैन ने,
खुद को तो एक बूँद न मिल सका;
लेकिन करबला को खून पिलाया हुसैन ने।
(५ )
फिर आज हक़ के लिए जान फिदा करे कोई,
वफ़ा भी झूम उठे यूँ वफ़ा करे कोई,
हुसैन की तरह मुझे अदा करे कोई।
नमाज़ 1400 सालों से इंतजार में है,
(६ )
एक दिन बड़े गुरूर से कहने लगी ज़मीन,
ऐ मेरे नसीब में परचम हुसैन का,
फिर चाँद ने कहा मेरे सीने के दाग देख,
होता है आसमान पर भी मातम हुसैन का।
(७ )
कर्बला को कर्बला के शहंशाह पर नाज है,
उस नवासे पर मुहम्मद को नाज है,
यूँ तो लाखों सिर झुके सजदे में ,
लेकिन हुसैन ने वो सजदा किया,
जिस पर खुदा को नाज है।
(८ )
हथियारों से जंग जीती जा सकती है पर दिल नहीं,
दिल तो किरदार से जीते जाते है।
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