रामदेव के बयान (२७ मई अंक )आईएमए ने जताया विरोध- सम्पादकीय में अभिव्यक्त विचार मंथन एवं विरोध से हम भारत धर्मी समाज के लोग सहमत हैं। आहत हैं आलमी स्वास्थ्य आपात काल के इस कोरोना आपद काल में जबकि तमाम चिकित्सा पद्धतियों को एक जूट हो इस आलमी महामारी का मुकाबला करना था ,रामदेव जी के गैर -ज़रूरी आपत्ति जनक परपीड़क बयानातों से हम बुरी तरह आहत हैं। हमारी संवेदनाएं अहर्निस परिवार से अपनों से एक मुद्द्त से दूर हुए , दमघोंटू परसनल किट ओढ़े उन कोरोना यौद्धाओं के संग हैं जो लोगों को बचाते -बचाते चल बसे। मैं मैं बड़ी बला(ई) है, सके निकल तो निकले भाग ।
अब जबकि आयुष मंत्रालय भी है परम्परागत चिकित्साओं को हर ओर से बढ़ावा भी दिया जा रहा है। यह बेहद दुर्भाग्य पूर्ण हैं रामदेव जी अपनी गलती क़ुबूल नहीं कर रहे हैं ,मामले को तूल दे रहे हैं। जबकि आज अवसाद और खिन्नता के इस दौर में समेकित चिकित्सा ,तन -मन की सम्प्पूर्ण चिकित्सा की दरकार है। एलोपैथी -आयुर्वेद के परस्पर संवर्धन के लिए सहजीवन की महती आवश्यकता है। शत्रु मामूली नहीं है बहरूपिया सार्स -कोव -२ अनेकांश रूप बदल अपने अस्तित्व को बनाये रखने कायम रखने में पैंतरे बदल रहा है रामदेव जी को ज़िद छोड़ सहयोग के लिए आगे आना चाहिए। अहंकार तो रावण को भी कुनबे सहित खा गया था -
मैं मैं बड़ी बला(ई) है, सके निकल तो निकले भाग ।
कहे कबीर कब लग रहे, रुई लपेटी आग।।
किसै न बदै आपि अहंकारी ,
धरम राइ तिसु करे खुआरी।
जो मनुष्य अहंकारी हो जाता है वह किसी की परवाह नहीं करता ,अंत समय में वह ख्वार होता है ,सतगुरु की दया से अहंकार मिट जाता है। प्रभु की दरगाह में निर-हंकारी ही क़ुबूल होता है।
वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा )
#८७० /३१ ,निकट फरीदाबाद मॉडल स्कूल ,सेक्टर -३१ ,फरीदाबाद
१२१ ००३
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