दैनिक जागरण २९ सितंबर २०२० में प्रकाशित प्रखर सम्पादकीय "किसानों के फ़र्ज़ी हितैषी "के सन्दर्भ में पाठकनामा के लिए मेरे उदगार सम्प्रेषित हैं : बेहद की गैर -यकीनीं बात है ,कोई किसान अपने ट्रेक्टर की होली जला सकता है,और उसे दूरदराज़ से लादकर राजपथ (इंडिय-गेट के दिल )के पास लाकर दहन करने का ख्याल भी मन में ला सकता है ट्रेक्टर हासिल करना थ्रेशर खरीदना ,पराली अलग करके खाद हेतु छिड़काव करने वाली मशीन रखना हर किसान का सपना होता है। पहले ये सपना बैलों की जोड़ी थी यहां तक के यही बैलों की जोड़ी कांग्रेस का चुनाव चिन्ह थी। मैं उन दिनों बाल्यावस्था भुगता रहा था बुलंदशहर प्रवास के दौरान मेरे एक मुंह बोले मामा ने एक कविता लिखी थी -दो बैलों की ओट सांड फिर आया रे। आज यही सांड छुट्टा घूम रहा है संसद से सड़क था अराजकता का जनक बना। उस दौर में उत्तरप्रदेश कांग्रेस का गढ़ था तीन हस्तियां अहम थीं -मुंशी (के ऍफ़ ),जुगलकिशोर ,गुप्ता (सी. वी. ) एक और कविता उसी दौर की आज भी मुझे कंठस्थ है : यूपी के हैं तीन चोर ,मुंशी गुप्ता जुगलकिशोर आज इन चोरों की संख्या घटते बढ़ते पचास के आसपास स्थिर हो गई है। इनम...